
Savitribai Phule Jayanti 2025 : सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव गांव में हुआ था। हर साल 3 जनवरी का दिन भारत की पहली महिला शिक्षिका, कवयित्री, और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनका जीवन महिलाओं और वंचित वर्गों की शिक्षा और समानता के लिए समर्पित था। वे शिक्षा को समाज के सशक्तिकरण का माध्यम मानती थीं और अपने जीवन में इस विचार को साकार करने के लिए उन्होंने अनगिनत संघर्ष किए।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सावित्रीबाई का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनका विवाह मात्र 9 वर्ष की आयु में 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हुआ। ज्योतिराव फुले ने उनकी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया और उन्हें पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार सावित्रीबाई ने शिक्षा के महत्व को समझा और इसे समाज में परिवर्तन लाने का साधन बनाया।
महिलाओं की शिक्षा में योगदान
सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं और उन्होंने 1848 में पुणे में पहला महिला विद्यालय खोला। उस समय महिलाओं को शिक्षा देना समाज में निषिद्ध माना जाता था। इस कार्य के लिए सावित्रीबाई को भारी विरोध और अपमान का सामना करना पड़ा। उन्हें काले कपड़े पहनने और समाज के तानों को सहने की आदत डालनी पड़ी, लेकिन उनके कदम डिगे नहीं।
सामाजिक सुधार में भूमिका
सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, और जातिवाद जैसी बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने विधवाओं के लिए पुनर्विवाह का समर्थन किया और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए आश्रय गृह खोले। सावित्रीबाई ने महिलाओं और दलितों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।
सावित्रीबाई की कविताएँ और लेखन
सावित्रीबाई फुले एक संवेदनशील कवयित्री थीं। उनकी कविताएँ शिक्षा, नारी सशक्तिकरण, और सामाजिक न्याय के संदेशों से ओतप्रोत हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया। उनकी कविताएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं और समाज में बदलाव के लिए उनकी सोच को दर्शाती हैं।
मानवता के प्रति समर्पण
जब महाराष्ट्र में 1877 का अकाल पड़ा, तो सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए। प्लेग महामारी के दौरान उन्होंने रोगियों की सेवा की। इस दौरान वे स्वयं प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।
सावित्रीबाई फुले की विरासत
सावित्रीबाई फुले के योगदान को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने 1998 में उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया। पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर “सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय” रखा गया। 2017 में गूगल ने उनके 186वें जन्मदिन पर डूडल समर्पित किया।
सावित्रीबाई फुले का जीवन हमें सिखाता है कि शिक्षा समाज के हर व्यक्ति का अधिकार है और इसके माध्यम से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है। उनका संघर्ष हमें हर चुनौती का सामना करने और बदलाव लाने की प्रेरणा देता है।
सावित्रीबाई फुले जयंती केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक आदर्श है। यह दिन हमें उनके संघर्ष, बलिदान, और शिक्षा के प्रति उनके अदम्य साहस को याद करने का अवसर देता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि यदि इरादे मजबूत हों, तो समाज की कुरीतियों को समाप्त किया जा सकता है और एक समानता और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की जा सकती है। आइए, सावित्रीबाई फुले के आदर्शों को अपनाकर उनके सपनों को साकार करने का प्रयास करें।