
Rishi Panchami 2025 : ऋषि पंचमी 2025 इस साल 28 अगस्त, बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को “ऋषि पंचमी” के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद आता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह तिथि अगस्त या सितंबर महीने में पड़ती है।
ऋषि पंचमी कोई साधारण त्योहार नहीं है, बल्कि यह महिलाओं द्वारा सप्त ऋषियों (सात ऋषियों) को श्रद्धांजलि देने और रजस्वला दोष से मुक्ति पाने के लिए मनाया जाने वाला पवित्र उपवास है।
ऋषि पंचमी का महत्व
हिंदू धर्म में पवित्रता और शुद्धता को अत्यधिक महत्व दिया गया है। ऋषि पंचमी का पर्व इस विचारधारा को प्रकट करता है कि जीवन में आत्मा और शरीर की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है।
माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं शारीरिक रूप से अशुद्ध होती हैं। इस समय उन्हें धार्मिक और घरेलू कार्यों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। यदि इस अवधि में नियमों का पालन नहीं किया जाता है, तो इसे “रजस्वला दोष” माना जाता है। रजस्वला दोष से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत अत्यधिक फलदायक माना गया है। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। सप्त ऋषि – वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि और गौतम – को यह पूजा समर्पित होती है।
ऋषि पंचमी व्रत की परंपराएं
ऋषि पंचमी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं। इस दिन का व्रत उपवास के रूप में रखा जाता है। महिलाएं सात ऋषियों का स्मरण करते हुए पूजा करती हैं और उनके प्रति आभार प्रकट करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं निम्नलिखित कार्य करती हैं:
पवित्र स्नान – गंगा जल या अन्य पवित्र जल से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है।
मिट्टी के बर्तन से पूजा – सप्त ऋषियों की मूर्तियों या प्रतीकों को मिट्टी या धातु के बर्तनों में स्थापित किया जाता है।
भोग अर्पण – पूजा में ताजे फल, फूल, और सात्विक भोजन का भोग लगाया जाता है।
व्रत कथा का श्रवण – ऋषि पंचमी व्रत की कथा का पाठ या श्रवण कर इस पर्व के महत्व को समझा जाता है।
नेपाली हिंदू समाज में महत्व
ऋषि पंचमी नेपाल के हिंदू समाज में अत्यधिक लोकप्रिय है। यहां महिलाएं इसे विशेष उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं। नेपाल में यह व्रत हरतालिका तीज व्रत के समापन के रूप में भी देखा जाता है। तीन दिवसीय हरतालिका तीज व्रत का अंतिम दिन ऋषि पंचमी पर ही समाप्त होता है।
व्रत कथा
कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण परिवार में पुत्रवधू मासिक धर्म के दौरान घर के नियमों का पालन नहीं कर पाई। इस कारण परिवार पर कई विपत्तियां आईं। जब ब्राह्मण दंपति ने सप्त ऋषियों से उपाय पूछा, तो उन्होंने रजस्वला दोष से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी व्रत की सलाह दी। इस व्रत को करने से न केवल परिवार के सभी दोष समाप्त हुए, बल्कि उन्हें सुख-समृद्धि का वरदान भी प्राप्त हुआ।
ऋषि पंचमी व्रत का संदेश
ऋषि पंचमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के स्वास्थ्य, शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। यह पर्व यह भी दर्शाता है कि समाज में स्त्रियों का स्थान कितना महत्वपूर्ण है।
ऋषि पंचमी का व्रत धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यह पर्व न केवल सप्त ऋषियों को समर्पित है, बल्कि महिलाओं के आत्मिक और शारीरिक शुद्धिकरण का भी प्रतीक है। इस पवित्र दिन पर व्रत और पूजा करने से जीवन में शांति, समृद्धि और पवित्रता आती है।