
Parashurama Jayanti 2025 : परशुराम जयंती 2025 में 29 अप्रैल को मनाई जाएगी, जो मंगलवार का दिन है। यह पर्व भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह दिन वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दौरान आता है। यह दिन विशेष रूप से इसलिए पवित्र माना जाता है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था। यही कारण है कि जिस दिन तृतीया प्रदोष काल में आती है, उसे परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है।
भगवान परशुराम का उद्देश्य
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान परशुराम का अवतार धरती पर बढ़ते अधर्म और अत्याचार को समाप्त करने के लिए हुआ था। उन्होंने पापी, विनाशकारी, और अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने वाले राजाओं का नाश करके पृथ्वी के बोझ को कम किया। उनकी छवि एक योद्धा और तपस्वी की है, जिन्होंने अपने बल, तप और धर्म के माध्यम से समाज में न्याय और संतुलन स्थापित किया।
परशुराम और अन्य अवतारों की भिन्नता
भगवान परशुराम को हिंदू धर्म में अन्य अवतारों से अलग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अन्य अवतारों के विपरीत, भगवान परशुराम आज भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। यही कारण है कि उन्हें राम और कृष्ण जैसे अवतारों की तरह पूजा नहीं जाता। हालांकि, उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान के रूप में कई स्थानों पर उनके नाम पर मंदिर और पवित्र स्थल स्थापित किए गए हैं।
परशुराम के प्रमुख तीर्थ स्थल
दक्षिण भारत में उडुपी के पास स्थित पजाका क्षेत्र भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ा एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसके अलावा, भारत के पश्चिमी तट पर भी कई मंदिर हैं जो भगवान परशुराम को समर्पित हैं। ये स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।
भविष्यवाणी और परशुराम की भूमिका
कल्कि पुराण के अनुसार, भगवान परशुराम विष्णु के 10वें और अंतिम अवतार श्री कल्कि के गुरु होंगे। वे कल्कि को मार्शल आर्ट्स और युद्ध कौशल में प्रशिक्षित करेंगे। यह दर्शाता है कि परशुराम का उद्देश्य केवल अपने समय तक सीमित नहीं था, बल्कि वे भविष्य में भी धर्म की स्थापना के लिए योगदान देंगे।
परशुराम और राम का ऐतिहासिक मिलन
यह पहली बार नहीं है कि भगवान परशुराम की किसी अन्य अवतार से भेंट हुई हो। रामायण के अनुसार, वे सीता और भगवान राम के विवाह समारोह में आए थे। यह अवसर भगवान विष्णु के छठे और सातवें अवतारों के ऐतिहासिक मिलन का प्रतीक है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि भगवान परशुराम का चरित्र न केवल शक्ति का बल्कि ज्ञान और शिष्टता का भी प्रतीक है।
परशुराम जयंती का महत्व
परशुराम जयंती का दिन भक्तों के लिए भगवान परशुराम के जीवन और आदर्शों को याद करने का अवसर है। इस दिन व्रत रखने, पूजा-अर्चना करने, और दान-पुण्य करने का महत्व है। भक्तगण उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
परशुराम जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह धर्म और न्याय की स्थापना के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि समाज में संतुलन और शांति बनाए रखने के लिए शक्ति और धर्म का सही उपयोग कितना आवश्यक है।