
Narasimha Jayanti 2025 : हर साल वैशाख माह की शुक्ल चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के चौथे अवतार, भगवान नरसिंह के जन्म के उपलक्ष्य में होता है। इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह के रूप में अवतार लिया था। नरसिंह का रूप आधा मनुष्य और आधा सिंह था, जो उनकी अद्भुत शक्ति और साहस का प्रतीक है।
नरसिंह जयंती का आयोजन 2025 में 11 मई को, रविवार के दिन, वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को होगा। यह दिन स्वाति नक्षत्र और शनिवार के साथ विशेष रूप से समृद्ध है, जिससे यह व्रत और पूजा और भी अधिक फलदायक मानी जाती है। इस दिन विशेष ध्यान और श्रद्धा से पूजा की जाती है, ताकि भगवान नरसिंह की कृपा प्राप्त हो सके।
नरसिंह जयंती व्रत और पूजा के नियम
नरसिंह जयंती पर व्रत रखने के लिए कुछ नियम और दिशा-निर्देश होते हैं, जो एकादशी व्रत के समान होते हैं। व्रति को नरसिंह जयंती से एक दिन पहले, यानी वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन, केवल एक बार भोजन करना होता है। इसके बाद व्रति को किसी भी प्रकार के अनाज और दाल का सेवन वर्जित रहता है। इस दौरान विशेष रूप से फलाहार और जल का सेवन किया जाता है।
व्रत के दौरान भक्तों को सूर्योदय से पहले से संकल्प लेकर दिनभर पूजा में ध्यान लगाना होता है। व्रत तोड़ने का समय अगले दिन सूर्योदय के बाद होता है, जब चतुर्दशी तिथि समाप्त हो जाती है। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है, तो जयंती के अनुष्ठान के बाद सूर्योदय के बाद ही व्रत तोड़ा जा सकता है। वहीं, अगर चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के बाद समाप्त होती है, तो व्रत सूर्योदय से पहले तोड़ा जा सकता है।
नरसिंह जयंती की पूजा विधि
नरसिंह जयंती के दिन पूजा विधि का पालन करते समय भक्त मध्याह्न में संकल्प लेते हैं और सूर्यास्त से पहले भगवान नरसिंह का पूजन करते हैं। यह माना जाता है कि भगवान नरसिंह का जन्म सूर्यास्त के समय हुआ था, जबकि चतुर्दशी तिथि चल रही थी। इस दिन विशेष रूप से रात्रि जागरण करने की परंपरा भी है, जो भक्तों को इस दिन की विशेष पूजा में और अधिक समर्पित करता है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को दान देना और अपने व्रत को समाप्त करना भी आवश्यक होता है।
नरसिंह अवतार का महत्व
भगवान नरसिंह का अवतार एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो राक्षस हिरण्यकश्यप के अत्याचारों के अंत के रूप में हुई। हिरण्यकश्यप एक महान राक्षस था, जो अपने आप को भगवान मानता था और उसने भगवान विष्णु के पूजा करने वाले अपने बेटे प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की। अंत में भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया। इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, चाहे उनके रूप और शक्ति के किसी भी रूप में क्यों न आना पड़े।
नरसिंह जयंती न केवल भगवान विष्णु के अवतार के महत्त्व को प्रदर्शित करती है, बल्कि यह एक दिन है जब हम भगवान की भक्ति और उनके प्रति श्रद्धा को और भी गहरा सकते हैं। इस दिन के द्वारा हम यह समझ सकते हैं कि भक्ति और विश्वास से बड़ी कोई शक्ति नहीं है, और भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।