
Mithuna Sankranti 2025 : मिथुन संक्रांति, जो इस वर्ष 15 जून 2025 को रविवार के दिन मनाई जाएगी, हिंदू कैलेंडर के तीसरे सौर महीने की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व न केवल खगोलीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी इसका विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में संक्रांति के समय को अत्यधिक पवित्र माना गया है और यह दान-पुण्य और धार्मिक कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।
मिथुन संक्रांति का महत्व
मिथुन संक्रांति, हिंदू धर्म में बारह संक्रांतियों में से एक है, और इसे दान-पुण्य और परोपकार के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है, जिससे मौसम और प्रकृति में बदलाव देखने को मिलता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को ‘संक्रमनम’ के नाम से जाना जाता है। संक्रांति के समय को ध्यान में रखते हुए, इससे संबंधित सभी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को संपन्न किया जाता है।
संक्रांति काल और शुभ मुहूर्त
संक्रांति के क्षण से लेकर अगले सोलह घटी (लगभग 6 घंटे 24 मिनट) तक का समय अत्यधिक शुभ होता है। इस अवधि में किए गए दान-पुण्य का कई गुना अधिक फल मिलता है। मिथुन संक्रांति के दौरान विशेष रूप से कपड़े, अनाज, फल और जरूरतमंदों को धन दान करना शुभ माना गया है। यह समय आत्मा की शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
परंपरागत रीति-रिवाज
मिथुन संक्रांति पर देश के विभिन्न हिस्सों में विविध परंपराएं और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। लोग गंगा स्नान, हवन, और पूजा-पाठ के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं। धार्मिक स्थलों पर विशेष अनुष्ठान और भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराने और वस्त्र दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
खगोलीय और पर्यावरणीय महत्व
मिथुन संक्रांति के समय सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करने से ऋतु चक्र में परिवर्तन होता है। यह समय ग्रीष्मकाल के अंत और वर्षा ऋतु की शुरुआत का संकेत देता है। पर्यावरणीय दृष्टि से यह समय फसलों के लिए अनुकूल माना जाता है। किसानों के लिए यह समय विशेष उत्साह और नई उम्मीदें लेकर आता है।
दक्षिण भारत में मिथुन संक्रांति
दक्षिण भारत में मिथुन संक्रांति को ‘संक्रमनम’ के नाम से जाना जाता है। यहां इसे एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। दक्षिण भारतीय परंपराओं में इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को खाना खिलाना और दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस मिथुन संक्रांति पर क्या करें?
दान-पुण्य: इस दिन कपड़े, भोजन और धन दान करें।
स्नान और ध्यान: पवित्र नदी में स्नान करें या घर पर स्नान के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
परिवार संग समय: इस दिन परिवार और दोस्तों के साथ धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लें।
पर्यावरण के लिए योगदान: पेड़ लगाकर या प्रकृति संरक्षण के कार्यों में भाग लेकर इस दिन को और भी सार्थक बनाएं।
मिथुन संक्रांति हमें अपने जीवन में दान, परोपकार और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा देती है। यह दिन हमें अपनी आंतरिक शुद्धि और सामाजिक उत्तरदायित्वों की याद दिलाता है। इस पावन अवसर पर किए गए अच्छे कार्य जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।