
Mesha Sankranti 2025 : मेष संक्रांति 2025 इस वर्ष 14 अप्रैल, सोमवार को मनाई जाएगी। इसे महा विषुव संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है और यह वैदिक ज्योतिष के अनुसार उस समय को चिह्नित करता है जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह दिन हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और पूरे भारत में विभिन्न नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
मेष संक्रांति का ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व
मेष संक्रांति का दिन सूर्य के राशि परिवर्तन का समय है। यह न केवल ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए भी अत्यधिक महत्व रखता है। इस दिन को नई ऊर्जा, सकारात्मकता, और आध्यात्मिक जागरूकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। संक्रांति के दौरान सूर्य की स्थिति जीवन के लिए शुभ मानी जाती है और इस समय दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी होता है।
भारत में विभिन्न राज्यों में मेष संक्रांति का उत्सव
विभिन्न राज्यों में इस दिन का क्या महत्व है:
1. उड़ीसा (पना संक्रांति)
उड़ीसा में इस दिन को “पना संक्रांति” कहा जाता है। यहां यह दिन हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार वर्ष के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है। लोग इस दिन पना नामक पेय बनाकर भगवान को अर्पित करते हैं और दान-पुण्य करते हैं।
2. तमिलनाडु (पुथंडू)
तमिलनाडु में इसे पुथंडू के नाम से जाना जाता है। जब संक्रांति सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले होती है, तो यह दिन नववर्ष का प्रतीक होता है। इस दिन घरों में विशेष पूजा-अर्चना और पारंपरिक व्यंजनों का आयोजन किया जाता है।
3. केरल (विशु)
केरल में इस दिन को “विशु” कहा जाता है। यह एक विशेष दिन होता है जब लोग भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। विशु कानी, एक शुभ दृश्य जिसमें फूल, फल और धन रखा जाता है, देखा जाता है।
4. पश्चिम बंगाल (पोहेला बैशाख)
पश्चिम बंगाल में इस दिन को “पोहेला बैशाख” कहा जाता है। यह बंगाली नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, घरों की सफाई करते हैं और सामाजिक मेलजोल का आयोजन करते हैं।
5. असम (बिहू) और पंजाब (बैसाखी)
असम में इसे बिहू के नाम से और पंजाब में इसे बैसाखी के रूप में मनाया जाता है। दोनों राज्यों में यह दिन कृषि और फसल कटाई के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। लोग पारंपरिक नृत्य और संगीत के माध्यम से खुशी व्यक्त करते हैं।
दान-पुण्य और धार्मिक अनुष्ठान
मेष संक्रांति के दिन दान-पुण्य करना विशेष महत्व रखता है। इस दिन संक्रांति क्षण से पहले और बाद की दस घटी (लगभग चार घंटे) को शुभ माना जाता है। लोग इस समय भगवान की पूजा, गंगा स्नान, और दान-पुण्य करते हैं। दक्षिण भारत में इसे संक्रमनम कहा जाता है और यहां परंपरागत अनुष्ठानों का पालन किया जाता है।
संक्रांति के शुभ समय का महत्व
मेष संक्रांति के शुभ समय पर किए गए कार्यों का धार्मिक दृष्टि से गहरा महत्व है। यदि संक्रांति सूर्यास्त के बाद होती है तो अगले दिन की सुबह को अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त माना जाता है। ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर दान, स्नान और पूजा का विशेष महत्व होता है।
मेष संक्रांति केवल ज्योतिषीय घटना नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उदाहरण भी है। यह दिन न केवल नए साल की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी उजागर करता है। चाहे इसे पना संक्रांति, पुथंडू, विशु, पोहेला बैशाख, बिहू या बैसाखी कहा जाए, यह दिन हर क्षेत्र में नई शुरुआत, खुशी और समृद्धि का संदेश लेकर आता है।