
Kumbha Sankranti कुंभ संक्रांति हिंदू सौर कैलेंडर के ग्यारहवें महीने की शुरुआत का प्रतीक है और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस वर्ष कुंभ संक्रांति 12 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी।
संक्रांति का महत्व
हिंदू धर्म में वर्षभर आने वाली बारह संक्रांतियां दान-पुण्य और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष मानी जाती हैं। संक्रांति का समय सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को दर्शाता है। कुंभ संक्रांति के समय सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करता है, और यह संक्रांति दान, स्नान और पुण्य कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
शुभ मुहूर्त और समय का महत्व
कुंभ संक्रांति के लिए शुभ समय संक्रांति क्षण से पहले सोलह घटी तक का होता है। एक घटी लगभग 24 मिनट की होती है, यानी संक्रांति से पहले के करीब 6 घंटे शुभ माने जाते हैं। इस दौरान किए गए दान और धार्मिक अनुष्ठान अत्यधिक फलदायी माने जाते हैं।
दान और धार्मिक अनुष्ठान
कुंभ संक्रांति के अवसर पर गायों का दान विशेष महत्व रखता है। इसे सबसे पुण्यदायी कार्यों में से एक माना गया है। इसके साथ ही गंगा में स्नान, विशेष रूप से त्रिवेणी संगम (जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है) में स्नान, अत्यधिक शुभ माना जाता है।
दक्षिण भारत में इस पर्व को “संक्रमनम” कहा जाता है। यहां भी संक्रांति को धार्मिक आस्था और दान के लिए एक विशेष दिन माना जाता है।
कुंभ संक्रांति: एक आध्यात्मिक अवसर
कुंभ संक्रांति केवल धार्मिक अनुष्ठानों का पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और समाज के प्रति कर्तव्यों को निभाने का भी प्रतीक है। इस दिन लोग न केवल पवित्र नदियों में स्नान और दान करते हैं, बल्कि अपने भीतर शांति और सद्भाव का अनुभव करने का प्रयास भी करते हैं।
इस संक्रांति पर, आप भी अपने समय और संसाधनों का उपयोग जरूरतमंदों की मदद के लिए कर सकते हैं। ऐसा करने से न केवल धार्मिक पुण्य मिलेगा, बल्कि समाज में सामूहिक सद्भाव और सहयोग की भावना भी मजबूत होगी।