
Kansa Vadh 2025 : कंस वध ब्रज क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण स्थानीय त्योहार है, जो भगवान कृष्ण की उस विजय का प्रतीक है जब उन्होंने अत्याचारी राजा कंस का वध किया और मथुरा को अन्याय और अत्याचार से मुक्त किया। यह पर्व मुख्य रूप से मथुरा में मनाया जाता है और इसे चतुर्वेदी समुदाय के द्वारा विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। 2025 में कंस वध का आयोजन 1 नवंबर, शनिवार को होगा। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह चतुर्वेदी समुदाय के सामाजिक और सांस्कृतिक एकजुटता का प्रतीक भी है।
कंस वध की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने के बाद उनके पिता, राजा उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। कंस वध ब्रज क्षेत्र में गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें रखता है। खासकर चतुर्वेदी समुदाय इसे अपनी परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं से जोड़ता है।
यह त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष दशमी को मनाया जाता है, जो आमतौर पर दीपावली के दस दिन बाद आता है। इसे दिवाली उत्सव का विस्तार भी माना जाता है। कंस वध के अगले दिन, देवउठनी एकादशी होती है, जो ब्रज क्षेत्र में धार्मिक महत्व के तीन वन परिक्रमा से जुड़ी है।
Kansa Vadh Shubh Muhurat 2025
(कंस वध का शुभ मुहर्त )
दशमी तिथि आरंभ – 31 अक्टूबर, 2025 को सुबह 10:03 बजे
दशमी तिथि समाप्त – 01 नवंबर, 2025 को सुबह 09:11 बजे
कंस वध का आयोजन विशेष रूप से चतुर्वेदी समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। चतुर्वेदी, जिसका अर्थ “चार वेदों का ज्ञाता” है, मथुरा की एक प्राचीन ब्राह्मण जाति है। इस समुदाय के लिए यह पर्व एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने का अवसर है।
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बसे चतुर्वेदी लोग, चाहे वे दुबई, यूएई, या भारत के अन्य शहरों जैसे मुंबई में क्यों न रहते हों, इस अवसर पर मथुरा वापस आते हैं। यह पर्व सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि चतुर्वेदी परिवारों और समाज के सदस्यों के बीच रिश्तों को मजबूत करने का अवसर भी है।
देवउठनी एकादशी
कंस वध के अगले दिन देवउठनी एकादशी पर तीन वन परिक्रमा की जाती है। यह परिक्रमा मथुरा, वृंदावन और गरुड़ गोविंद को कवर करती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कंस वध के बाद इस परिक्रमा के जरिए अपने पापों से मुक्ति पाई थी। यह परंपरा आज भी मथुरा के लोग निभाते हैं।
तीन वन परिक्रमा में श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यह न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि ब्रज क्षेत्र के सांस्कृतिक गौरव को बनाए रखने का जरिया भी है।
कंस वध न केवल भगवान कृष्ण की वीरता और धर्म की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह मथुरा की संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहार स्थानीय लोगों और प्रवासियों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। चतुर्वेदी समुदाय इसे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व का हिस्सा मानता है।
इस आयोजन के माध्यम से नई पीढ़ी को ब्रज की परंपराओं और धार्मिक महत्व से जोड़ा जाता है। साथ ही, यह उत्सव मथुरा के सांस्कृतिक और पर्यटन विकास में भी योगदान देता है।
कंस वध 2025 मथुरा के लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक धरोहर, और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई और धर्म की विजय होती है।