
Guru Gobind Singh Quotes in hindi : गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना साहिब में हुआ था, जो अब सिख धर्म के एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। उनका बचपन से ही अद्वितीय व्यक्तित्व और धार्मिक प्रवृत्ति के प्रति झुकाव था। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें गुरु, अद्वितीय दार्शनिक, और महान कवि थे। उन्होंने सिख धर्म को एक नई दिशा देते हुए खालसा पंथ की स्थापना की और सिख समुदाय को साहस, निडरता, और सेवा के मार्ग पर अग्रसर किया।
Guru Gobind Singh Quotes in hindi
1.सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।
2. जब आव की औध निधान बने, अति ही रन में तब जूझ मरूं।
3. जिसके सिर पर गुरु का हाथ होता है, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता।
4. इनसान का सबसे बड़ा धर्म है दूसरों की सेवा करना।
5. जो दूसरों को क्षमा करता है, वही सच्चा योद्धा है।
6. सच्चे मार्ग पर चलने वाले को कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता।
7. नर हो निडर, शेर हो सच्चा।
8. धरती पर वही महान है जो मानवता की सेवा करता है।
9. सबसे बड़ी जीत अपने डर पर विजय प्राप्त करना है।
10. एक ईश्वर की उपासना करो और प्रेम से जीवन जियो।
11. जो अपने कर्तव्य को निभाने में तत्पर है, वही सच्चा योद्धा है।
12. जब आव की औध निधान बने, अति ही रन में तब जूझ मरूं।
खालसा पंथ और “वाहेगुरु जी का खालसा”
बैसाखी के पावन दिन, 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह” का नारा दिया, जो आज भी सिख समुदाय की एकता और विजय का प्रतीक है। खालसा पंथ की स्थापना के साथ उन्होंने सिखों को पांच ककार धारण करने का आदेश दिया:
- केश – ईश्वर की भेंट के रूप में बिना कटे बाल।
- कड़ा – लोहे का कंगन, जो धार्मिकता और बंधन का प्रतीक है।
- कृपाण – आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा का प्रतीक।
- कंघा – स्वच्छता और अनुशासन का प्रतीक।
- कच्छा – संयम और मर्यादा का प्रतीक।
साहित्यिक योगदान और रचनाएँ
गुरु गोबिंद सिंह जी महान लेखक और रचनाकार भी थे। उनकी रचनाओं का संग्रह ‘दसम ग्रंथ’ में संकलित है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
- जाप साहिब
- अकाल उस्तत
- बिचित्र नाटक (उनकी आत्मकथा)
- चंडी चरित्र
- ज़फ़रनामा
इन रचनाओं में आध्यात्मिक, शौर्य और नैतिकता के गहरे संदेश मिलते हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम रूप दिया और इसे सिख धर्म का शाश्वत गुरु घोषित किया। उन्होंने व्यक्तिगत नेतृत्व को समाप्त कर आध्यात्मिकता और ज्ञान को प्राथमिकता दी।
14 युद्धों का नेतृत्व
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ और धर्म की रक्षा के लिए 14 युद्ध लड़े। उन्होंने मुगलों और उनके सहयोगियों से अदम्य साहस के साथ संघर्ष किया और धर्म की रक्षा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया।
गुरु गोबिंद सिंह का जीवन मानवता, साहस, और धर्म के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके विचार और कृतियाँ आज भी हमें सच्चाई, न्याय, और निडरता का मार्ग दिखाती हैं।
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न कोई हिंदू, न कोई मुसलमान; सब इंसान हैं, एक समान।
तुसी प्रभु के सपूत हो, हर मुश्किल का सामना करो।
पांच प्यारे बनाकर मैंने दिखा दिया कि सच्चे हृदय से जुड़कर हम असंभव को संभव कर सकते हैं।
खालसा मेरा रूप है खास, खालसा में ही करूं निवास।
सतगुरु की सेवा सबसे बड़ा उपहार है।