
Govatsa Dwadashi 2025 : गोवत्स द्वादशी 2025 इस साल 17 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह पर्व खासतौर पर गायों और बछड़ों की पूजा का पर्व है और इसे विशेष रूप से हिंदू धर्म में सम्मानित किया जाता है। गोवत्स द्वादशी, धनतेरस से एक दिन पहले मनाई जाती है और इस दिन का महत्त्व विशेष रूप से गायों और उनके बछड़ों के प्रति श्रद्धा और सम्मान को व्यक्त करने से जुड़ा है।
गोवत्स द्वादशी का आयोजन विशेष रूप से उन क्षेत्रों में होता है जहां गायों को पूजा जाता है और उन्हें मां के रूप में सम्मानित किया जाता है। इस दिन गायों और बछड़ों की पूजा के बाद, उन्हें गेहूं और दूध से बनी वस्तुएं दी जाती हैं। यह पूजा खासतौर पर कृषि समाज में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि गायों का योगदान खेती और जीवन की अन्य गतिविधियों में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। गायों को दूध, गोबर और गौमूत्र के रूप में जीवन की आवश्यकता के लिए अनुपम संसाधन मिलते हैं।
इस दिन, जो लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत रखते हैं, वे पूरे दिन गेहूं और दूध से बनी कोई भी चीज़ नहीं खाते हैं। इस व्रत का उद्देश्य शुद्धता और समर्पण को प्रकट करना होता है, साथ ही साथ इसे धार्मिक रूप से शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में नंदिनी व्रत को गोवत्स द्वादशी के साथ जोड़ा जाता है, जिसमें नंदिनी को दिव्य गाय के रूप में पूजा जाता है। नंदिनी को भगवान शिव की कृपा से जुड़ा हुआ माना जाता है और उनकी पूजा से मनुष्य को स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है।
महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी को वसु बारस के नाम से जाना जाता है। यह दिन दीपावली के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है। वसु बारस का पर्व विशेष रूप से गायों और बकरियों की पूजा के रूप में होता है, और इसमें गायों को अच्छे आहार और उपहार देकर उनका सम्मान किया जाता है। यह दिन कृषि और पशुपालन से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन वे अपने पशुओं की पूजा कर उन्हें आशीर्वाद देते हैं और यह मान्यता है कि इससे उनके जीवन में समृद्धि आती है।
गोवत्स द्वादशी का यह पर्व न केवल धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का पालन करता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और पशुपालन के महत्व को भी प्रदर्शित करता है। इस दिन के माध्यम से हम अपने पारंपरिक मूल्यों और प्रकृति से जुड़ी आस्था को प्रकट करते हैं। गोवत्स द्वादशी के दिन गायों और बछड़ों की पूजा, व्रत और उपहार देने की प्रक्रिया न केवल धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है, बल्कि यह एक संकेत है कि हम अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण हिस्से को सम्मानित करें जो हमारे जीवन के लिए इतना महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार, गोवत्स द्वादशी का पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर, पशुपालन की महत्ता और प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हर वर्ष हमें हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक आदर्शों को याद दिलाता है और हमें अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है।