
हिंदी साहित्य के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। वे छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे, लेकिन उनकी रचनाएँ केवल भावुकता तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने समाज की विषमताओं, शोषण और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई। ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘वह तोड़ती पत्थर’, ‘सरोज स्मृति’ जैसी उनकी कविताएँ अत्यंत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और भाषा को सहजता और ओजस्विता प्रदान की। उनकी लेखनी समाज सुधार और राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत रही।
“वह तोड़ती पत्थर” कविता श्रमशील नारी की संघर्ष-गाथा को व्यक्त करती है, जो अपने कठोर परिश्रम से जीवन का निर्माण करती है।
वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर,
वह तोड़ती पत्थर।कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय हाथ का कठोर कर्म,
स्वेद की बूंदे अनजान
गिरतीं उसकी वक्ष-स्थल पर,
वह तोड़ती पत्थर।दिनकर के मुख की ओर
देखकर आँखें –
नहीं उठीं,
सिर्फ अपन सहा दर्द –
मौन सहन करती रही,
वह तोड़ती पत्थर।