
Budget 2025 Hindi : आगामी बजट 2025 को लेकर आम जनता और करदाताओं में उम्मीदें बढ़ रही हैं, लेकिन व्यक्तिगत आयकर में बड़ी कटौती को लेकर सरकार का रुख साफ नहीं दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अब तक व्यक्तिगत आयकर में बड़े बदलाव करने से परहेज किया है। हालांकि, सरकार ने नई सरलीकृत कर व्यवस्था की शुरुआत की है, जिसमें कम कर दरें प्रदान की गई हैं, लेकिन इसके साथ विभिन्न कर छूट और कटौती को समाप्त करना पड़ा है।
व्यक्तिगत आयकर, सरकारी राजस्व का एक स्थिर और महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कॉर्पोरेट कर से भी अधिक योगदान देता है। हालांकि, कर छूट और कटौती से सरकार के राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। टैक्स विशेषज्ञ राहुल गर्ग का कहना है कि पिछले बजट में नई कर व्यवस्था के तहत 7 लाख रुपये तक की आय को कर-मुक्त कर दिया गया था, जिससे मध्यम वर्ग को कुछ राहत मिली। लेकिन यह राहत सिर्फ कर पिरामिड के निचले हिस्से तक सीमित रही।
मुद्रास्फीति, खासतौर पर खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी, करदाताओं पर अप्रत्यक्ष दबाव डालती है। हालांकि, यह बोझ ज्यादातर उन लोगों पर पड़ता है जो कर के दायरे में नहीं आते। कर-मुक्त आय सीमा बढ़ाने का तर्क मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करना है, लेकिन सरकार ने इस पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
छोटे व्यवसाय और स्टार्ट-अप चलाने वाले उद्यमियों के लिए आयकर अनुपालन कर दरों से बड़ा सिरदर्द बन गया है। उन्हें न केवल आयकर कानूनों का पालन करना पड़ता है, बल्कि अन्य व्यावसायिक नियमों का भी अनुपालन करना होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक अनुमानित कर व्यवस्था लागू करके यह बोझ कम किया जा सकता है।
सरकार आयकर के जरिए प्राप्त राजस्व का उपयोग बुनियादी ढांचे, सब्सिडी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए करती है। साथ ही, समाज के गरीब तबकों को लाभ पहुंचाने के लिए इस राजस्व का पुनर्वितरण किया जाता है। लेकिन भ्रष्टाचार और लाभ वितरण में रिसाव इस प्रक्रिया को कमजोर कर देता है।
आयकर का एक बड़ा हिस्सा ₹10 लाख से अधिक कमाने वाले करदाताओं से आता है। सरकार को न केवल राजस्व को स्थिर रखना है, बल्कि समाज में असमानता कम करने के लिए संसाधनों का सही उपयोग भी सुनिश्चित करना है। यही वजह है कि सरकार आयकर में कटौती करने या बड़े बदलाव करने से हिचकिचा रही है।
इस संदर्भ में सवाल उठता है कि क्या आम आदमी को और राहत देने की आवश्यकता है, या क्या मौजूदा व्यवस्था में संसाधनों का सही और पारदर्शी तरीके से उपयोग सुनिश्चित करना ही बेहतर होगा?