
Vat Purnima Vrat 2025 : भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है, और वट पूर्णिमा व्रत उनमें से एक है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है। साल 2025 में, वट पूर्णिमा व्रत 10 जून को, दिन मंगलवार के दिन पड़ेगा।
वट पूर्णिमा व्रत का महत्व
वट पूर्णिमा व्रत को वट सावित्री व्रत के समान माना जाता है। इसका आधार महाभारत काल की पौराणिक कथा है, जिसमें सावित्री ने अपनी बुद्धिमानी और समर्पण से यमराज को पराजित कर अपने पति सत्यवान का जीवन वापस प्राप्त किया। सावित्री के इस त्याग और साहस ने वट पूर्णिमा व्रत को विवाहित महिलाओं के लिए एक प्रेरणादायक त्योहार बना दिया।
व्रत के दिन महिलाएं वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं, क्योंकि इसे दीर्घायु और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। वट वृक्ष को धार्मिक मान्यताओं में भी विशेष स्थान प्राप्त है। महिलाएं वृक्ष की परिक्रमा कर धागा बांधती हैं और व्रत कथा सुनती हैं।
व्रत का पालन और क्षेत्रीय विविधता
भारत में व्रत और त्योहारों को मनाने की विधि और तिथियां क्षेत्रीय कैलेंडर के अनुसार अलग-अलग हो सकती हैं। वट पूर्णिमा व्रत का पालन पूर्णिमांत और अमंता कैलेंडर दोनों में किया जाता है।
पूर्णिमांत कैलेंडर: उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है।
अमंता कैलेंडर: महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में वट पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। इसलिए, इन राज्यों में यह व्रत उत्तर भारत से 15 दिन बाद पड़ता है।
व्रत कथा और पूजा विधि
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के जीवन को बचाने के लिए अपनी चतुराई और भक्ति का परिचय दिया। उसने यमराज से वाद-विवाद करते हुए अपने पति के प्राण वापस मांगे। इस कथा का स्मरण करते हुए महिलाएं व्रत रखती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करती हैं।
पूजा विधि:
प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान पर वट वृक्ष की शाखा या चित्र स्थापित करें।
वट वृक्ष की जड़ों में जल चढ़ाएं और सिंदूर, चूड़ी, फल-फूल आदि अर्पित करें।
वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटते हुए परिक्रमा करें।
व्रत कथा सुनें और आरती करें।
आधुनिक युग में वट पूर्णिमा व्रत
आज के समय में, व्रत के प्रति श्रद्धा और विश्वास कम नहीं हुआ है, बल्कि इसे मनाने के तरीके में थोड़ा बदलाव आया है। महिलाएं इस दिन अपने पारंपरिक परिधानों में सजती हैं और पूजा के दौरान सामूहिक उत्सव का आयोजन करती हैं।
वट पूर्णिमा व्रत भारतीय समाज में विवाहित महिलाओं के लिए प्रेम, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। सावित्री की कथा हर महिला को यह सिखाती है कि विश्वास और दृढ़ता से किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है। यह व्रत न केवल पति-पत्नी के रिश्ते को सुदृढ़ करता है, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ता है।