
Nirjala Ekadashi Vrat 2025 : निर्जला एकादशी व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है, जो इस बार 6 और 7 जून 2025, शुक्रवार और शनिवार को पड़ रही है। इसका विशेष महत्व इसलिए है कि इसे करने से चौबीस एकादशियों के व्रत के बराबर फल प्राप्त होता है। “निर्जला” का अर्थ है बिना जल के, और इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को अन्न और जल का पूरी तरह त्याग करना होता है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी व्रत को वैष्णव परंपरा में अत्यधिक पुण्यकारी माना गया है। जो भक्त पूरे वर्ष की चौबीस एकादशियों का पालन करने में असमर्थ होते हैं, उनके लिए इस एक व्रत का पालन करना सभी एकादशियों के फल के समान लाभकारी होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर उनके प्रति भक्ति और समर्पण व्यक्त किया जाता है। यह व्रत संयम, आत्मनियंत्रण और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।
पौराणिक कथा
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है। यह नाम इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा से जुड़ा है। महाभारत के अनुसार, पांडवों में भीमसेन अपनी भोजनप्रियता के कारण अन्य भाई-बहनों की तरह एकादशी का व्रत नहीं कर पाते थे। इस कारण वे भगवान विष्णु की कृपा से वंचित हो जाते थे।
एक दिन भीम अपनी इस स्थिति से व्यथित होकर महर्षि व्यास के पास गए। महर्षि व्यास ने उन्हें साल में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत को विधि-विधान से करने पर सभी एकादशियों के बराबर फल मिलने का आशीर्वाद भीम को प्राप्त हुआ। तब से यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई।
व्रत की विधि और नियम
व्रत प्रारंभ: निर्जला एकादशी का व्रत सूर्योदय से पहले स्नान करके प्रारंभ किया जाता है।
पानी और भोजन का त्याग: इस दिन भक्त को पानी और भोजन से पूरी तरह परहेज करना चाहिए।
पूजा-अर्चना: भगवान विष्णु की पूजा के लिए तुलसी के पत्तों और पंचामृत का उपयोग किया जाता है। भक्त श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।
पारण: द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद हरिवासर समाप्त होने पर व्रत तोड़ने का विधान है। व्रत तोड़ने के लिए प्रातःकाल का समय शुभ माना गया है।
समय का ध्यान
व्रत का पारण समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। द्वादशी तिथि के भीतर व्रत तोड़ना आवश्यक होता है। हरिवासर, जो द्वादशी का पहला एक चौथाई समय होता है, के दौरान व्रत तोड़ने की मनाही है।
आध्यात्मिक लाभ
इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शुद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
विशेष ध्यान रखने योग्य बातें
यदि शारीरिक स्थिति व्रत के अनुरूप नहीं है, तो फलाहार करके व्रत का पालन किया जा सकता है।
वृद्ध, बीमार, और गर्भवती महिलाओं को व्रत का पालन उनकी शारीरिक स्थिति के अनुसार करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत एक आध्यात्मिक साधना है, जो भक्तों को जीवन में अनुशासन, श्रद्धा और भगवान विष्णु के प्रति भक्ति की गहराई को समझने का अवसर प्रदान करता है।