
Vat Savitri Vrat 2025 : वट सावित्री व्रत 2025 इस साल 26 मई, सोमवार के दिन मनाया जाएगा। यह पर्व भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उनके पति की लंबी आयु और समृद्धि के लिए समर्पित है। व्रत का पालन करने की परंपरा उत्तर और दक्षिण भारत में थोड़े अलग तरीके से की जाती है, लेकिन इसकी मूल कथा और उद्देश्य एक जैसे हैं।
वट सावित्री व्रत: दो अलग-अलग कैलेंडर की परंपरा
भारतीय पंचांग में त्योहारों को मनाने के लिए दो प्रमुख चंद्र कैलेंडर प्रचलित हैं—पूर्णिमांत और अमंता। उत्तर भारत में पूर्णिमांत कैलेंडर का पालन किया जाता है, जिसमें वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है। यह शनि जयंती के साथ भी मेल खाता है। वहीं, महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत जैसे राज्यों में अमंता कैलेंडर का पालन होता है, और यहाँ यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
इस भिन्नता के चलते उत्तर भारत में यह व्रत दक्षिण भारत की तुलना में 15 दिन पहले मनाया जाता है। हालांकि, दोनों परंपराओं में इस व्रत का उद्देश्य एक ही है—पति की भलाई और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करना।
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत का संबंध महान नारी सावित्री की कथा से है, जिन्होंने अपनी चतुराई और भक्ति से मृत्यु के देवता यमराज को पराजित कर अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस पाया। यह कथा स्त्रियों को न केवल भक्ति और समर्पण का संदेश देती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
किंवदंती के अनुसार, सावित्री के पति सत्यवान को उनके जीवन के समाप्त होने की भविष्यवाणी के बारे में पता था। जब यमराज सत्यवान की आत्मा लेने आए, तो सावित्री ने अपनी बुद्धिमानी और संकल्प से उन्हें इस कर्तव्य से विमुख कर दिया। यमराज को उनकी भक्ति से प्रभावित होकर सत्यवान का जीवन लौटाना पड़ा। इस कथा के माध्यम से वट वृक्ष (बरगद) की पूजा का भी महत्व बताया गया है, क्योंकि यह दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
वट सावित्री व्रत की विधि
व्रत के दिन महिलाएँ प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। पूजा में वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित किया जाता है और उसके चारों ओर धागा बाँधकर परिक्रमा की जाती है। पूजा में सावित्री और सत्यवान की कथा का वाचन भी किया जाता है। इस दिन महिलाएँ निर्जल व्रत रखती हैं और अपनी संतान तथा पति के जीवन में खुशहाली की कामना करती हैं।
व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह स्त्री-पुरुष के आपसी प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक भी है। यह पर्व महिलाओं को उनकी आस्था और विश्वास के साथ परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करने का अवसर प्रदान करता है।
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति का ऐसा पर्व है जो हमें जीवन में परिवार और रिश्तों के महत्व का एहसास कराता है। यह न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह जीवन में संघर्ष, प्रेम और समर्पण के आदर्शों को भी प्रकट करता है। 26 मई 2025 को आने वाले इस विशेष पर्व के लिए सभी विवाहित महिलाओं को शुभकामनाएँ।