
Vikram Sarabhai : 30 दिसंबर, 1971 को भारत के महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई का निधन हुआ था। यह दिन उनके योगदान और समर्पण को याद करने का अवसर बन गया है। डॉ. साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के संस्थापक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी और देश को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। डॉ. विक्रम साराभाई, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक, ने न केवल विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि उन्होंने कई युवा वैज्ञानिकों की दिशा और प्रेरणा भी दी। उनके मार्गदर्शन में कई वैज्ञानिकों ने करियर की ऊंचाइयों को छुआ। इनमें एक नाम विशेष रूप से प्रमुख है – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने।
बचपन से विज्ञान के प्रति रुचि
विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद में हुआ था। एक समृद्ध जैन परिवार में जन्मे साराभाई को बचपन से ही विज्ञान में गहरी रुचि थी। वे न केवल एक वैज्ञानिक थे, बल्कि उनके भीतर समाज के कल्याण की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए कई संस्थानों की स्थापना की, जिनमें भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद और सबसे महत्वपूर्ण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) शामिल हैं।
ISRO की स्थापना और भारत का अंतरिक्ष अभियान
1962 में डॉ. विक्रम साराभाई ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की, जिसे बाद में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का नाम दिया गया। उनके नेतृत्व में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में उल्लेखनीय प्रगति हुई। उन्होंने दक्षिणी भारत में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन की स्थापना की, जो बाद में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का अहम केंद्र बन गया।
भारत का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ 1975 में लॉन्च हुआ, जो डॉ. साराभाई की दूरदर्शिता और नेतृत्व का प्रतीक था। यह घटना भारतीय अंतरिक्ष यात्रा में एक मील का पत्थर साबित हुई। साराभाई का सपना था कि भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में आत्मनिर्भर बनाया जाए, और उन्होंने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
विक्रम साराभाई का निधन
30 दिसंबर, 1971 की रात को डॉ. विक्रम साराभाई को मुंबई जाने से पहले एक महत्वपूर्ण डिजाइन समीक्षा बैठक में भाग लेना था। उन्होंने भारत के राष्ट्रपति से फोन पर बातचीत की, लेकिन बातचीत के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 52 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनका निधन देश के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।
डॉ. विक्रम साराभाई को उनके योगदान के लिए पद्म भूषण
डॉ. विक्रम साराभाई को उनके योगदान के लिए पद्म भूषण (1966) और मरणोपरांत पद्म विभूषण (1972) से सम्मानित किया गया। उनकी याद में चंद्रमा पर एक क्रेटर का नाम ‘विक्रम’ रखा गया। भारतीय डाक विभाग ने उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया था।
डॉ. विक्रम साराभाई का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि विज्ञान केवल तकनीकी विकास का नाम नहीं है, बल्कि यह समाज के कल्याण के लिए भी है। उनका दृष्टिकोण और समर्पण हमें हमेशा प्रेरित करेगा, और उनके योगदान के कारण भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम आज दुनिया में एक मिसाल बन चुका है।